आजकल दिन-रात social media पर ज्ञान की बाढ़ सी आ गई है। हर कोई यह कहता नजर आता है, “तुम दोषी हो अगर ठोकर खाई है”, “तुम कुछ भी कर सकते थे”, “तुमने मेहनत नहीं की”। लेकिन क्या सच में बात इतनी आसान है? नहीं।
यह सब अधूरा सच है। इसलिए चलिए, आज थोड़ा practical होकर जीवन को समझते हैं।
देखिए, यह जीवन खुद एक chaos है, यानी अव्यवस्था, गड़बड़ी, बवाल, गोलमाल, अराजकता। हमारी जिंदगी की कई समस्याओं का जिम्मेदार यही उसकी आंतरिक प्रकृति है। शुरुआत chaos से होती है और अंत तक यह chaos चलता है।
हमारा जन्म कहाँ होगा, किस घर में होगा, वहां का शैक्षिक स्तर क्या होगा, माँ-बाप का बौद्धिक स्तर कैसा होगा, पारिवारिक मूल्य क्या होंगे, ये सब हमारे नियंत्रण में नहीं। सब कुछ chance factor है। उसी तरह समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, पड़ोस, ये सब पहले से तय मिले हैं।
आप चाहे जितने लायक हों, जितनी मेहनत करें, पर अगर ऐसे देश में पैदा हुए जहाँ “राजा का बेटा राजा बनता है”, तो रास्ते में रुकावटें आएंगी। आप नारे लगाते रह जाएंगे, पर कुर्सी वही ले जाएगा जिसके पास सत्ता और व्यवस्था का सहारा है।
जाती, लिंग, परिवार, धन, ये सब समीकरण जीवन में असमानताएँ लाते हैं। अमीर पिता डोनेशन देकर बेटे को डॉक्टर बना देगा, गरीब के पास वो साधन नहीं। दुनिया की सबसे अमीर 1% आबादी के पास 45% संपत्ति है, जबकि निचले 50% के पास सिर्फ 1%।
इसलिए समाज में कोई level playing field नहीं है।
फिर भी, हम हर चीज़ में pattern ढूंढते रहते हैं, क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ?
लेकिन सच्चाई यह है कि कोई स्थायी pattern नहीं है। हमारे जीवन में हर दिन हजारों संभावनाएँ बनती-बिगड़ती हैं।
कौन-सा दोस्त मिला, घर का माहौल कैसा था, पैसे की तंगी थी या नहीं, यही सब मिलकर भविष्य का रास्ता तय करते हैं।
Coaching संस्थानों और social media ने कुछ सफल लोगों की कहानियों से हमारे मन में अपराधबोध भर दिया है, लेकिन हर एक सफलता के पीछे सौ असफल कहानियाँ दब जाती हैं।
मेहनत जरूरी है, पर अगर मेहनत के बाद भी सफलता न मिले, तो यह आपकी बड़ी गलती नहीं है। क्योंकि हर दिन एक नया chance factor है।
एक ही गाँव में दो बच्चे, एक अफसर के घर जन्मा और एक मज़दूर के घर, उनके रास्ते कभी एक जैसे नहीं हो सकते।
जब convent में पढ़ी English medium की लड़की उस लड़की के साथ race दौड़ती है जिसे नया बस्ता मांगने पर माँ ने डांट दिया था, तो race का नतीजा पहले से तय होता है।
अब सोचिए, कितना load लोगे? कितने अफसोस मनाओगे? कितनी बार खुद को दोष दोगे?
आपके हिस्से में बस दौड़ना है, लेकिन race के हर छोर पर कोई आपकी हार का इंतजार कर रहा है। कोई षड्यंत्र करेगा, कोई पैर खींचेगा।
इसलिए दुख छोड़ो। आप जीवन में जो नहीं कर पाए, उसके लिए आप दोषी नहीं, बल्कि वो रचयिता दोषी है जिसने हर इंसान को अलग-अलग साधन दिए।
आप चाहे दुनिया के बादशाह बन जाएं, पर जिसे आत्मा से प्रेम किया, वह न मिल पाए, क्योंकि यह जीवन समझौतों से भरा है।
Company बंद हो सकती है, share डूब सकते हैं, transfer हो सकता है, बच्चा कमजोर निकल सकता है, खुद बीमार पड़ सकते हैं, तो किस चीज़ को कितना control करेंगे?
यह संसार दुखालय है। हर कोई किसी न किसी रूप में दुख झेलेगा।
अधिकतर लोगों की मानसिक शक्ति तो बचपन में ही तोड़ दी जाती है, जब उन पर उम्मीदों का पहाड़ लाद दिया जाता है।
माता-पिता अपने बचपन के trauma को आगे बढ़ा देते हैं, और फिर बच्चे को कोसते हैं।
लेकिन सच यही है, किसी बच्चे ने “पैदा करो” की application नहीं दी थी। यह माता-पिता की जिम्मेदारी थी। इसलिए बच्चों पर उपकार जताना बंद करें और तनाव छोड़ दें।
आप जितना कर पा रहे हैं, वो बहुत है। कोशिश करते रहो। जितना होगा, बहुत होगा।
क्योंकि जीवन जीने के लिए आया है, दुख मनाने के लिए नहीं।
आज की भीड़भाड़ और संसाधनों की कमी में अगर आपके पास छत है और थाली में खाना है, तो यह भी बड़ी उपलब्धि है।
जब समाज से जुड़ेंगे, तो टकराव होगा ही।
हर इंसान का chaos दूसरे के chaos से टकराता है।
छोटे लोग अपनी हीन भावना को छुपाने के लिए छोटी-छोटी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटते रहते हैं।
षड्यंत्र, ईर्ष्या, लोभ, ये सब जीवन के हिस्से हैं।
हम सब कभी न कभी फंसेंगे।
लेकिन जो हमें फंसाता है, वो खुद भी फंसेगा, बस हमें पता नहीं चलेगा।
Butterfly effect यही बताता है, कि एक छोटा बदलाव भविष्य को पूरी तरह बदल सकता है।
इसलिए जो भी घट रहा है, उसे लेकर खुद को दोष मत दीजिए।
डॉक्टर के.के. अग्रवाल, जो रोज टीवी पर कोविड पर ज्ञान देते थे और वैक्सीन लगवा चुके थे, वे भी कोविड से चल बसे।
इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि जीवन में कुछ भी हो सकता है।
हम हर चीज़ के लिए दोषी नहीं हैं।
यह सब systematic collapse है, जो जीवन के inherent chaos के कारण होता है।
मन की हो जाए तो ठीक, न हो तो भी ठीक।
चूहों की दौड़ में सबसे आगे न बने तो भी कोई बात नहीं।
वैसे भी, हमारे मरने के बाद सब मिट्टी हो जाएगा।
हमारी डिग्रियाँ संदूक में सड़ जाएँगी, कारें जंग लगकर लोहा बन जाएँगी, कपड़े फट जाएँगे, और तस्वीरें किसी कोने में दब जाएँगी।
पचास साल बाद कोई सबूत नहीं बचेगा कि हम कभी इस पृथ्वी पर थे।
इसलिए, फालतू का बोझ मत उठाओ। खुद को माफ कर दो।
जीवन छोटा सा है, इसे जीना सीखो, जीना महसूस करो।
Load मत लो।